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गुरुवार, 24 नवंबर 2011

आधे अधूरे.......

[१]
हर  पल की परछाई 
आ घेर ले मुझे 
अब न कोई तमन्ना 
अब न कोई कसक
रह सका अब मेरे  मन में 
सिर्फ दर्द.......
वो भी थोडा सा...
 [२] 
कह दिया फरिश्तों से 
अब रहमो करम कम कर
इन मेहरबानियों को 
रखूं तो कहाँ रखूं... 
[३] 
हम रिश्तों के समन्दर में 
झाग बन कर रह गए
गहराइयां जब बढती गई 
शुक्र है डूबने से तो बच गए.....

शनिवार, 12 नवंबर 2011

मैं ...


पल-पल में ढूँढू 
क्षण-क्षण में भूलूँ
आती जाती यादों को 
अवाक् सी  मैं ..


कुछ द्वंदों में झूलती
प्रतिरूप को खोजती 
पथ से पग-पग 
भ्रमित होती  मैं..

दुःख ना जानू तेरे
पीड़ा ना समझूं उसकी 
क्या है आना-जाना ,बस
निश्चेत सी मैं..   

कुछ सन्नाटों को बिखेरू
कुछ ठिठोली में गूँज जाऊं
ध्वनि- प्रतिध्वनि के  बीच 
मूक सी मैं..


ना सहेज संकू मन मस्तिष्क
ना ही संवेदनाओं का 
आदान- प्रदान 
बस क्षणिक 
निर्वात सी मैं...!!



  

बुधवार, 9 नवंबर 2011

परिवर्तन

एक उलझन  है ये परिवर्तन 
न माने तेरी ,न माने मेरी 
खींच ही लेता है मनोवेगों से 
ये प्रवर भंवर सा परिवर्तन 

कभी मध्यम सा 
कभी भूचाल सा 
कभी सरसराता 
है ये अजीब सा परिवर्तन 

मैं तो चलाचल हूँ 
अपनी ही चाल में 
मुझे रौंदता सा 
आगे बढ जाता है
ये उन्मादी  सा परिवर्तन  ....!!!!  

बुधवार, 2 नवंबर 2011

कुछ दर्द...अलग सा ..!

मेरे गाँव की मिट्टी 
शायद सोचती होगी ताउम्र   

क्यूँ  हूँ  मैं इस छोर पर 
जिसे अंतिम कहते हैं
छोड़ जाते है सब
सिर्फ कुछ जाते पदचिन्ह 
कर जाते है पलायन 
कभी सुख के बहाने 
कभी समृद्धि के बहाने...

ताकती रहती हूँ दिन भर
इन बंद दरवाजों को 
आहट तेरे आने की
नया जोश भर देंगी मुझमें 
न जाने बैठी हूँ कब से 
एक क्षण मुस्कुराने को ...

जाना होता है जब कभी
भूले भटके उस ओर..
गाँव की मिट्टी सुबक कर कहती है
ना..जा.. लौट कर
ना कर पलायन....!!