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गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

:):)

याद है अब तक
वो बचपन में पूजा जाना
वो पैर धुलना
माथे पर टीका चुनर
इस घर से उस घर
अपने सिक्के सँभालते
मन थमते नही थमता था

कितना अजीब है
अर्थ समझ आते गए
उम्र के साथ साथ
और ह्रदय गहराता गया ....!!!

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

:)

कुछ जला बुझा फिर से मेरे भीतर
सुर्ख हुआ... पर खाक ना हुआ..!!!