कतरा जो थमा था निकलते -निकलते
चुभता है कितना ये ना पूछो
बेतरतीबी मेरी..मेरे लहजे से बयाँ होती है
है किरदार मेरा क्या ..ये ना पूछो
मेरी वफाये तेरे वजूद में कैद हैं
हैं इश्क कैसा मेरा??..ये ना पूछो
तेरा अक्स मेरे जर्रे जर्रे में बिखरा
है आईना कैसा मेरा ...ये ना पूछो