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सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

कांच के टुकड़े

सुनो 
मेरे पास कुछ
कांच के टुकड़े हैं
पर उनमें 
प्रतिबिंब नहीं दिखता
पर कभी 
फीका महसूस हो 
तो उन्हें धूप में 
रंग देती हूं
 
चमक तीक्ष्ण हो जाते
तो दुबारा 
परतों में दफ्न 
कर देती हूं 

पर ये
निरंतरता उबाती है
कभी कहीं
शायद वो टुकड़े
गहरे पानी में डूबो आऊ

बताओ
क्या वो कांच 
तुम भी 
बनना चाहोगे ..???
  .. आशा बिष्ट

रविवार, 19 जनवरी 2020

एकल संवाद

मन तेरा 
चित्र तेरा 
मस्तिष्क तेरा 
मेरे हिस्से 
मैं ही मैं

ख्वाहिशें तेरी 
उन्माद तेरा 
जिज्ञासा तेरी 
चाहत तेरी 
मेरे हिस्से 
मैं ही मैं ..!!
@asha bisht