सुनो
मेरे पास कुछ
कांच के टुकड़े हैं
पर उनमें
प्रतिबिंब नहीं दिखता
पर कभी
फीका महसूस हो
तो उन्हें धूप में
रंग देती हूं
चमक तीक्ष्ण हो जाते
तो दुबारा
परतों में दफ्न
कर देती हूं
पर ये
निरंतरता उबाती है
कभी कहीं
शायद वो टुकड़े
गहरे पानी में डूबो आऊ
बताओ
क्या वो कांच
तुम भी
बनना चाहोगे ..???
.. आशा बिष्ट