सच है
देहरी पार की मैंने
वर्जनाओं की
रुढ़िवाद की
पाखंड की
कुंठा की ....
ओह
सभ्य समाज ....!
तुम्हारी ओर से
सिर्फ घृणा .?
कहो
इतने नाजुक कब से हो लिए?
किसी स्त्री के प्रति...??
शब्द ने शब्द जोड़े.. शब्द से शब्द बिखरे.. शब्द -शब्द ने ढूंढें अक्षर.. शब्द- शब्द फिर, शब्दश: खामोश हुए..!