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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

प्रेम

 निश्छल है 
अविरल है 
अनवरत है ये
तुम्हारे लिए.

खामोश है 
स्पंदन लिए
बह जाता
धार लिए
सम्मलित है इन शब्दों में
तुम्हारे लिए..

साक्षात्कार है ये
मेरा, मेरे मन से
मौन है ये 
सुन कर तुम्हें
दर-ब-दर  बढ़ता जाता
तुम्हारे लिए..

पारितोष है मेरा
निशब्द मुस्कराहट तुम्हारी
जाने- अनजाने तैर आती है जो
सिर्फ मेरे लिए...!!

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

समय

कभी तल्ख़ सा चुभता है ये 
कभी संजोये सुमधुर ख्वाब
कभी कह जाता क्षण-क्षण 
और कभी निशब्द हो जाता है....|

थामना चाहती हूँ जब कभी
रफ़्तार उसकी बढ सी जाती है 
कभी गुजर जाने की चाह में ये
शूल सी पीड़ा दे जाता है....|

मैं हूँ बेसुध खोज में इसकी
चाहती हूँ हर पल साथ चलना
पर मुझे ही उलझा कुछ पलों में ये 
आगे बढ जाता मेरा ही चिर प्रतिद्वंदी
ये निष्ठुर समय....||