कभी तल्ख़ सा चुभता है ये
कभी संजोये सुमधुर ख्वाब
कभी कह जाता क्षण-क्षण
और कभी निशब्द हो जाता है....|
थामना चाहती हूँ जब कभी
रफ़्तार उसकी बढ सी जाती है
कभी गुजर जाने की चाह में ये
शूल सी पीड़ा दे जाता है....|
मैं हूँ बेसुध खोज में इसकी
चाहती हूँ हर पल साथ चलना
पर मुझे ही उलझा कुछ पलों में ये
आगे बढ जाता मेरा ही चिर प्रतिद्वंदी
ये निष्ठुर समय....||
कभी संजोये सुमधुर ख्वाब
कभी कह जाता क्षण-क्षण
और कभी निशब्द हो जाता है....|
थामना चाहती हूँ जब कभी
रफ़्तार उसकी बढ सी जाती है
कभी गुजर जाने की चाह में ये
शूल सी पीड़ा दे जाता है....|
मैं हूँ बेसुध खोज में इसकी
चाहती हूँ हर पल साथ चलना
पर मुझे ही उलझा कुछ पलों में ये
आगे बढ जाता मेरा ही चिर प्रतिद्वंदी
ये निष्ठुर समय....||
समय मुड़ कर कभी पीछे नहीं देखता कि किसका हित अनहित हुआ...
जवाब देंहटाएंनिष्ठुर तो वह है ही!
आपका पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट नकेनवाद पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंकिसी के रोके कब रुका है समय...वो तो अपनी रफ़्तार से बढ़ता ही जाता है, चाहे जो हो..
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi rachna
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर
जवाब देंहटाएंसमय सच में बडा बलवान होता है.....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
वक़्त के साथ चलना बहुत मुश्किल होता है फिर भी कोशिश तो कर ही सकते हैं।
जवाब देंहटाएंसादर
आगे बढ जाता मेरा ही चिर प्रतिद्वंदी
जवाब देंहटाएंये निष्ठुर समय....||
......सार्थक संदेश देती रचना
बेहद सुन्दर शब्दों का प्रयोग खूबसूरत कविता बधाई
जवाब देंहटाएंवक़्त सख्त है, कमबख्त है,,,
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
www.poeticprakash.com
भावपूर्ण बेहद खूबसूरत सुंदर प्रस्तुति,.....बढ़िया पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
जहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
रख छूरी जनता के,अफसर मस्ती के लाली में,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
मैं हूँ बेसुध खोज में इसकी
जवाब देंहटाएंचाहती हूँ हर पल साथ चलना
पर मुझे ही उलझा कुछ पलों में ये
आगे बढ जाता मेरा ही चिर प्रतिद्वंदी ...
ये समय सच में बहुत निष्ठुर है ... किसी के लिए नहीं रुकता ... इअके साथ साथ चलना ही पड़ता है ... अच्छे भाव हैं आपकी रचना में ...
behtreen rachna abhivaykti....
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती सुंदर प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंपहली बार आप के ब्लॉग पर आना हुआ,अच्छा लगा यहाँ आ कर,बेहतरीन रचना है ,ये पंक्तियाँ बिशेष पसंद आईं .......पर मुझे ही उलझा कुछ पलों में ये
जवाब देंहटाएंआगे बढ जाता मेरा ही चिर प्रतिद्वंदी
ये निष्ठुर समय....||...बधाई स्वीकारें....... :)
behad bhaavpurn...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंKhoobsurat rachna behad bhaavpurn prastuti..
जवाब देंहटाएंMere blog par aane ke liye dhanyawaad.
aise hin khoosurat rachnao se ru-ba-ru karwate rahen.
Aabhaar...!
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआप तो बहुत प्यारा लिखती हैं..बधाई. 'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंआशा जी आप के ब्लांग में आकर बहुत अच्छा लगा..गहन भावमयी सार्थक संदेश देती सुन्दर रचना..मेरी नई पोस्ट मे आप का स्वागत है..
जवाब देंहटाएंथामना चाहती हूँ जब कभी
जवाब देंहटाएंरफ़्तार उसकी बढ सी जाती है
कभी गुजर जाने की चाह में ये
शूल सी पीड़ा दे जाता है....|
vah bahut sundar likha hai ap ne badhai.
बहुत सुन्दर आशा जी...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
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