हाशिये छोड़ ..कतार के आखिर में मै
शोर और संवाद दोनों खत्म मुझतक
हर ओर भीड़..उससे निकलती हंसी
छनी छनी सिर्फ गुनगुनी मुस्कान मुझतक
बेशक आधे अधूरे हैं पर ...कभी तो
कैसे तो पहुंचे शब्द मेरे तुझ तक ...!!ं
शब्द ने शब्द जोड़े.. शब्द से शब्द बिखरे.. शब्द -शब्द ने ढूंढें अक्षर.. शब्द- शब्द फिर, शब्दश: खामोश हुए..!
हाशिये छोड़ ..कतार के आखिर में मै
शोर और संवाद दोनों खत्म मुझतक
हर ओर भीड़..उससे निकलती हंसी
छनी छनी सिर्फ गुनगुनी मुस्कान मुझतक
बेशक आधे अधूरे हैं पर ...कभी तो
कैसे तो पहुंचे शब्द मेरे तुझ तक ...!!ं
खूबसूरत हैं जिन्दगी
बिलकुल मेरी डायरी सी
शुरूआती पन्ने
बहुत सुन्दर
तमाम रंग..मेरे हाथों से
तो कुछ बड़ो के सहारों से
फिर
ओह्ह...बेहतरीन चटक रंग
लाल गुलाबी पीले नीले
पर सब एक साथ
शायद ज्यादा हो लिए
वरना काले नही पड़ते...
बाद के कुछ पन्ने
कटे फटे ..
मुड़े भी
उफ़ कुछ तो स्याह
एकदम सख्त ..
ये क्या...??
ये पन्ने फिर खाली
एकदम कोरे
ऐसा क्यूँ???
मैं कहाँ थी???
और कुछ पन्ने
तेरे लिए छोड़े हैं
काश कोई कह दे
कि लिख दो
या लिख दूँ??
कुछ पारदर्शी रंगों
तेरा नाम फिर से ....!!!े
कतरा जो थमा था निकलते -निकलते
चुभता है कितना ये ना पूछो
बेतरतीबी मेरी..मेरे लहजे से बयाँ होती है
है किरदार मेरा क्या ..ये ना पूछो
मेरी वफाये तेरे वजूद में कैद हैं
हैं इश्क कैसा मेरा??..ये ना पूछो
तेरा अक्स मेरे जर्रे जर्रे में बिखरा
है आईना कैसा मेरा ...ये ना पूछो
कुछ शब्दों
की सुगबुगाहट
पूछ लेती है
कभी कभी
"ये तू है"..??
मन अल्हड सा
बिना शर्त
स्वीकारता
"हाँ..ये मैं ही हूँ "..!!ै