कतरा जो थमा था निकलते -निकलते
चुभता है कितना ये ना पूछो
बेतरतीबी मेरी..मेरे लहजे से बयाँ होती है
है किरदार मेरा क्या ..ये ना पूछो
मेरी वफाये तेरे वजूद में कैद हैं
हैं इश्क कैसा मेरा??..ये ना पूछो
तेरा अक्स मेरे जर्रे जर्रे में बिखरा
है आईना कैसा मेरा ...ये ना पूछो
तेरा अक्स मेरे जर्रे जर्रे में बिखरा....बहुत खूबसूरत भाव ...!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ मैंने भी एक ब्लॉग बनाया है मैं चाहता हूँ आप मेरा ब्लॉग पर एक बार आकर सुझाव अवश्य दें...
तेरा अक्स मेरे जर्रे जर्रे में बिखरा
जवाब देंहटाएंहै आईना कैसा मेरा ...ये ना पूछो
....वाह...बहुत सुन्दर...
बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंhttp://mauryareena.blogspot.in/
:-)
खूबसूरत पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंतेरा अक्स मेरे जर्रे जर्रे में बिखरा
जवाब देंहटाएंbahut khoob ....!!
तेरा अक्स मेरे जर्रे जर्रे में बिखरा
जवाब देंहटाएंहै आईना कैसा मेरा ...ये ना पूछो ..
बहुत खूब .. उनका अक्स जर्रे जर्रे मेंताभी बिखरता है जब प्रेम ऊंचे शिखर को छूता है ...
लाजवाब भावाव्यक्ति ...
बहुत खूबसूरत अल्फाज़ हैं ..... कुछ यूँ कहते तो और भी बेहतर लगता :-
जवाब देंहटाएंकतरा थमा था जो निकलते हुए
चुभता है कितना, ये ना पूछो
बेतरतीबी लहजे से बयाँ होती है
है किरदार मेरा क्या, ये ना पूछो,
मेरी वफाये तेरे वजूद में कैद हैं
हैं इश्क मेरा कैसा, ये ना पूछो,
तेरा अक्स मेरे जर्रे-जर्रे में बिखरा
है आईना मेरा कैसा, ये ना पूछो,
बहुत ही खूबसूरत इमरान जी
हटाएंतेरा अक्स मेरे जर्रे जर्रे में बिखरा
जवाब देंहटाएंहै आईना कैसा मेरा ...ये ना पूछो
सुंदर भाव और सुंदर शब्दों से सजी रचना है …
बहुत खूबसूरत !
बेहद शानदार रचना ....बहुत खूब आशा जी मज़ा आ गया आज इसे पढ़कर...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओ के साथ
संजय भास्कर