वेदनाएं निरंतर हैं
हर्ष निरंतर है
चाह स्थिरता की
निरंतर है
जिस अंतिम का
वो प्रहार है
आखिर वो अंतिम
है क्या ???
प्रथम पहर में
तुम नहीं थे
मध्यम में भी
तुम नहीं थे
अब उस अंतिम में
तुम्हारा होना
व्यर्थ है ....!!!
शब्द ने शब्द जोड़े.. शब्द से शब्द बिखरे.. शब्द -शब्द ने ढूंढें अक्षर.. शब्द- शब्द फिर, शब्दश: खामोश हुए..!
पीछे मुड़कर देखूं जरा तो
जिन्दगी का भी layout
सा कुछ दिखता है
लगता है इस कोने का
उस कोने रख दिया
निकाल शोर से
सन्नाटे में छुपा लिया
ओह्ह ___देखो वहां पर जरा
चटक लाल रंग रह गया
Hmm,____ पीला मुरझाया -सा
(निश्चित थी कि सूखा न था)
पत्ता...!!
हां वही ,__
उसे भी सहेज लिया
पर वो "रिश्ते"
वाला हिस्सा
संवर रहा है अभी भी
बस जरा जरा सा .....!!!
(Asha Bisht )