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सोमवार, 28 अप्रैल 2014

तुझ तक

हाशिये छोड़ ..कतार के आखिर में मै
शोर और संवाद दोनों खत्म मुझतक

हर ओर भीड़..उससे निकलती हंसी
छनी छनी सिर्फ गुनगुनी मुस्कान मुझतक

बेशक आधे अधूरे हैं पर ...कभी तो
कैसे तो पहुंचे शब्द मेरे तुझ तक ...!!ं

12 टिप्‍पणियां:

  1. खुबसूरत भावमय प्रस्तुति.
    आभार.

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  2. शब्द दूओसरे तक पहुँच कर ही अर्थ लेते हैं ...
    बहुत खूब ...

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  3. बहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण रचना
    मन को छूती हुई
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    आग्रह है----
    और एक दिन

    जवाब देंहटाएं
  4. काफी दिनों बाद आना हुआ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |

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  5. आधे अधूरे शब्द भी बहुत कुछ कह जाते हैं।

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