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गुरुवार, 24 नवंबर 2011

आधे अधूरे.......

[१]
हर  पल की परछाई 
आ घेर ले मुझे 
अब न कोई तमन्ना 
अब न कोई कसक
रह सका अब मेरे  मन में 
सिर्फ दर्द.......
वो भी थोडा सा...
 [२] 
कह दिया फरिश्तों से 
अब रहमो करम कम कर
इन मेहरबानियों को 
रखूं तो कहाँ रखूं... 
[३] 
हम रिश्तों के समन्दर में 
झाग बन कर रह गए
गहराइयां जब बढती गई 
शुक्र है डूबने से तो बच गए.....

28 टिप्‍पणियां:

  1. हम रिश्तों के समन्दर में
    झाग बन कर रह गए
    गहराइयां जब बढती गई
    शुक्र है डूबने से तो बच गए.....

    कशक..... कसक *
    सुंदर भावों से ओत प्रोत रचनाएं .....!

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  2. केवल जी सचेत करने के लिए ...आभार
    एवं टिप्पणी रूपी प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार....

    जवाब देंहटाएं
  3. हम रिश्तों के समन्दर में
    झाग बन कर रह गए
    गहराइयां जब बढती गई
    शुक्र है डूबने से तो बच गए.....

    लाजवाब पंक्तियाँ हैं।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब,,,,सुन्दर

    http://www.poeticprakash.com/

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  5. सुंदर और सार्थक प्रस्तुति
    टी0वी0100 ब्लॉग पर आपका स्वागत है। इस ब्लॉग में योगदान(लिखने) देने के लिए
    अपना ई-मेल पता, हमारे इस ई-मेलपते tv100news@gmail.com पर भेजें।

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  6. कह दिया फरिश्तों से
    अब रहमो करम कम कर
    इन मेहरबानियों को
    रखूं तो कहाँ रखूं... बहुत ही बढ़िया

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  7. तीनो ही बाते बहुत ही अच्छी है..
    .हम रिश्तों के समन्दर में
    झाग बन कर रह गए
    गहराइयां जब बढती गई
    शुक्र है डूबने से तो बच गए.....
    खासकर यह बात तो बहुत ही जादा अच्छी है...

    जवाब देंहटाएं
  8. कह दिया फरिश्तों से
    अब रहमो करम कम कर
    इन मेहरबानियों को
    रखूं तो कहाँ रखूं..
    अत्यंत ही भावपूर्ण प्रस्तुति...शुभकामनायें !!

    जवाब देंहटाएं
  9. यशवंत जी
    प्रकाश जी
    अतुल जी
    अनुपमा जी
    संतोष जी
    रश्मि जी
    रीना जी
    डिमरी जी
    संगीता जी
    और tv १०० आप सभी का हार्दिक आभार....

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  10. हम रिश्तों के समन्दर में
    झाग बन कर रह गए
    गहराइयां जब बढती गई
    शुक्र है डूबने से तो बच गए.....bahut khub.

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  11. वाह! बहुत ही सुन्दर लिखतीं हैं आप,आशा जी.
    हलचल में आपकी प्रस्तुति देख बहुत ही खुशी मिली.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.

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  12. @अब रहमो करम कम कर
    इन मेहरबानियों को
    रखूं तो कहाँ रखूं...

    बहुत खूब!

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  13. आशा जी,..
    भाव पूर्ण सुंदर क्षनिकाएं प्यारी पन्तियाँ,...बधाई
    मेरी नये पोस्ट "प्रतिस्पर्धा"में इंतजार है,.....

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  14. आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
    इतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
    आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद्
    दिनेश पारीक
    http://dineshpareek19.blogspot.com/
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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  15. मैं दिनेश पारीक आज पहली बार आपके ब्लॉग पे आया हु और आज ही मुझे अफ़सोस करना पद रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर शायद ये तो इश्वर की लीला है उसने तो समय सीमा निधारित की होगी
    बात यहाँ मैं आपके ब्लॉग की कर रहा हु पर मेरे समझ से परे है की कहा तक इस का विमोचन कर सकू क्यूँ की इसके लिए तो मुझे बहुत दिनों तक लिखना पड़ेगा जो संभव नहीं है हा बार बार आपके ब्लॉग पे पतिकिर्या ही संभव है
    अति सूंदर और उतने सुन्दर से अपने लिखा और सजाया है बस आपसे गुजारिश है की आप मेरे ब्लॉग पे भी आये और मेरे ब्लॉग के सदशय बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद
    दिनेश पारीक

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  16. सुंदर प्रस्तुति...
    दिनांक 28/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
    हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
    हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर

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