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रविवार, 16 मई 2021

क्षणिका

हां 
सच है 
देहरी पार की मैंने 
वर्जनाओं की
रुढ़िवाद की 
पाखंड की
कुंठा की ....

ओह
सभ्य समाज ....!
तुम्हारी ओर से 
सिर्फ घृणा .?

कहो
इतने नाजुक कब से हो लिए?
किसी स्त्री के प्रति...??


3 टिप्‍पणियां:

  1. इतने नाजुक तो सदियों से हैं । सभ्य समाज यही करता आ रहा ।

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  2. पेड़ की जड़ें गहरी हो तो उसे उखाड़ फेंकने में वक्त तो लगता है। ...

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  3. मन को गहरे तक छूती क्षणिका बहुत अच्छी हैं

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