उत्तराखंड की त्रासदी किसी से छुपी नहीं है कुछ भी बोलना मुझे स्वयं को भी सहन नहीं होगा।
इस दैवीय आपदा पर कुछ पंक्तिबद्ध करना मेरी आपनी मौत पर जश्न मनाने समान होगा। अभी भी जहाँ मैं रहती हूँ यहाँ अखबार नहीं आया बिना रास्तेे पुल के विद्यालय बंद है।बुनयादी सुविधाए न के बराबर... इंटरनेट है क्यों कि ये बुनियादी सुविधा में नही आता..और हां इतनी ख़ामोशी हैं की खुद की आवाज भी चुभ जाती हैं... और सबसे अजीब बात केदारनाथ में प्रलय की बात 20जून को पता चलीं
क्यों कि उस विपदा में संपर्क खुद तक ही रह पाया।
अंत में यही कहना है कि श्री केदार धाम ने अपने ही पर्याय वाची शब्द को चरितार्थ किया हैं वो है "जलीय" या "दलदल"
बस यही कहूँगी....
""क्या कुछ बिखरा टूटा
इन पहाड़ो से पूछो
ये आवाज ना दें
तो हम पहाडियों से पूछो""
उम्मीद है ज़िन्दगी वहाँ जल्दी से वापस सामान्य हो जाए.
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन बेचारा रुपया - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसभी दुखी हैं, सब वापस पटरी पर आजाय, यही दुआ है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इस त्रासदी ने देश को लगभग हिला दिया है। यहाँ जल्दी से लोगों का जीवन पटरी पर लौटे। यही भगवान से प्रार्थना है।
जवाब देंहटाएंईश्वर, शोकाकुल परिवारों को इस त्रासदी से उबरने की शक्ति प्रदान करे
जवाब देंहटाएंसच बेहद दुखद हादसा था....
जवाब देंहटाएंप्रकृति के आगे मजबूर थे हम.....लोगों के मन और परिस्थितियां सम्हल जाए यही कामना है...
अनु
इस त्रासदी से सभी दुखी हैं,ईश्वरसे यही प्रार्थना है कि शोकाकुल परिवारों को इस त्रासदी से उबरने की शक्ति प्रदान करे..
जवाब देंहटाएंइस त्रासदी ने कितनों का कितना कुछ ले लिया ... ईश्वर का कहर या इन्सान की उपज ... पर दुख तो दुख ही होता है ...
जवाब देंहटाएंक्या कुछ बिखरा टूटा
जवाब देंहटाएंइन पहाड़ो से पूछो
ये आवाज ना दें
तो हम पहाडियों से पूछो""
..सच पहाड़ का पहाड़ सा दुःख हम पहाड़ियों से बेहतर भला कौन समझेगा ....प्रकृति के इस कहर से सभी दुखी हैं..
आप कहां रहते हैं, यदि सुविधा लगे तो बताने का कष्ट करें। बिलकुल हम से कोई पूछे तो कि क्या-क्या बताएं क्या हुआ है,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विकेश जी
हटाएंचमोली जिले के दूरस्थ BLOK की हूँ
जहाँ के लिएBACKWARD शब्द प्रयोग किया जाता है
पीड़ा अनेक हैं
यकीनन यही कहना चाहुगी कि सिर्फ केदार धाम बद्री धाम को नुक्सान नही हुआ है सारा उत्तराखंड कराहरहा है।।
वहाँ रहती हूँ विकेश जी जहाँ के लिए backward शब्द प्रयोग किया जाता है
हटाएंरहने की जगह पिछड़ी हुई नहीं होती। आलीशान में जगह पर अगर मूर्ख रहते हैं तो उससे पिछड़ी जगह कोई नहीं हो सकती।
हटाएंजो कुछ भी हुआ वो बहुत दुखद था........ईश्वर सबका कल्याण करे.....आखिरी पंक्तियों ने आँखें नम कर दी।
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद ,इस त्रासदी से उबरने की शक्ति प्रदान करे
जवाब देंहटाएंधर्म निर्पेक्षता का नारा बुलंद करने बाले
आम आदमी का नाम लेने बाले
किसान पुत्र नेता
दलित की बेटी
सदी के महा नायक
क्रिकेट के भगबान
सत्यमेब जयते की घोष करने बाले
घूम घूम कर चैरिटी करने बाले सेलुलर सितारें
अरबों खरबों का ब्यापार करने बाले घराने
त्रासदी के इस समय में
पीड़ित लोगों को नजर
क्यों नहीं आ रहे .
यकीनन उबरने में अभी वक़्त लगेगा।।।
हटाएंमेरे खुद के रिश्तेदार अभी भी घर से बाहर जंगल में टेंट में रह रहे हैं
कौन दोषी और किससे उम्मीद . ...
सब शून्य ।।
एक बात और कहना चाहूंगी जब जब श्री बद्री केदार धामों कपाट खुलते है सुप्रसिद्ध घराने वहां सर्वप्रथम उपस्थित रहते हैं अब वो कहाँ हैं ये जरूर हम उत्तराखंड वासियों को जानना है।।
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हटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
जवाब देंहटाएंप्रकृति के आगे सब मजबूर हो जाते है.पर जो भी हुआ वह बहुत दुखद था,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अपनी पहचान
आप भी उत्तराखंड में ही रहती हैं ....?
जवाब देंहटाएंहां जी
हटाएंमैं उत्तराखंड के चमोली जिला की हूँ ।
हेमकुंड साहिब एवं बद्रीनाथ दोनों तीर्थ स्थल यहीं हैं ..
बहुत दुखद था जो कुछ भी हुआ
जवाब देंहटाएंkya likha h. . . samvedansheel!! :) :D
जवाब देंहटाएंकिसको मालूम था,उस रात उफनती, वह
जवाब देंहटाएंनदीं, देखते देखते ऊपर से, गुज़र जायेगी !
कैसे मिल पाएंगे ?जो लोग,खो गए घर से,
मां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !