प्रत्येक व्यक्ति को लगता है दुनिया के सब दुःख दर्द अपने सर मढे हैं। नतिजन सवाल उठता है 'मैं ही क्यों' पर जो है उसमें बेहतर जिंदगी जीना जरूरी होता है बिना शिकायत के। पर कभी-खभार 'मैं ही क्यों' पूछा जाना जरूरी है। हां यह सवाल आस-पास को पूछा जा सकता है पर तकदीरको नहीं।
सुंदर रचना। मैं बस मैं को ही जानता है इसलिए सुख-दुख सब मैं-मय हो जाते हैं। हमें सिर्फ़ अपने घाव दिखते हैं सुंदर-सुंदर कपडों के नीचे दूसरे लोग कितने घाव लेकर जी रहे हैं उसका हमें कतई एहसास नहीं है। सच तो यह है कि अपने सारे घावों के बावजूद हम दूसरों से ज़्यादा खुशनसीब हो सकते हैं।
क्योंकि इन्सान अपने से इतर कुछ सोच नहीं पाता ... ऐसी भावनाएं अपने साथ हुई किसी भी घटना के साथ उठना स्वाभाविक होता है ... मानव मन के मनोविज्ञान को सोच के लिखी रचना ...
प्रत्येक व्यक्ति को लगता है दुनिया के सब दुःख दर्द अपने सर मढे हैं। नतिजन सवाल उठता है 'मैं ही क्यों' पर जो है उसमें बेहतर जिंदगी जीना जरूरी होता है बिना शिकायत के। पर कभी-खभार 'मैं ही क्यों' पूछा जाना जरूरी है। हां यह सवाल आस-पास को पूछा जा सकता है पर तकदीरको नहीं।
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी टिप्पणी
हटाएंआभार
विवशता के दंश बताती पंक्तियां, बढ़िया।
जवाब देंहटाएंभावमयी सुन्दर पंक्तियां,..
जवाब देंहटाएंइस सवाल से शायद हर कोई गुजरता है. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंसबको यही लगता है की "मैं' ही क्यूँ........वजह साफ़ है 'मैं' है इसीलिए ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना। मैं बस मैं को ही जानता है इसलिए सुख-दुख सब मैं-मय हो जाते हैं। हमें सिर्फ़ अपने घाव दिखते हैं सुंदर-सुंदर कपडों के नीचे दूसरे लोग कितने घाव लेकर जी रहे हैं उसका हमें कतई एहसास नहीं है। सच तो यह है कि अपने सारे घावों के बावजूद हम दूसरों से ज़्यादा खुशनसीब हो सकते हैं।
जवाब देंहटाएंक्योंकि इन्सान अपने से इतर कुछ सोच नहीं पाता ... ऐसी भावनाएं अपने साथ हुई किसी भी घटना के साथ उठना स्वाभाविक होता है ... मानव मन के मनोविज्ञान को सोच के लिखी रचना ...
जवाब देंहटाएं....सार्थक संदेश के साथ ....एक ईमानदार कविता
जवाब देंहटाएंशानदार,बहुत उम्दा प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंशानदार,बहुत उम्दा प्रस्तुति,
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