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शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

तुम और मैं

मैं सिर्फ
हाँ और ना
में गुम
और तुमने
अपने शब्दकोश
के सारे शब्द
उडेल दिये
बोलो___विचित्र
तुम या मैं

मैं तेरे तिलिस्म
में घुलती रही
और तुम
उलझे उलझे
खुद से ही
बोलो___ख्वाब में
तुम या मैं

जानती हूं
ना तुम थे
ना रहोगे
बोलो____सच्चा कौन
तुम या मैं ......!

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-09-2017) को
    "चलना कभी न वक्र" (चर्चा अंक 2730)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. प्रेम को कहने के लिए शब्दों का तिलिस्म कहाँ चाहिए ... दो शब्द और कई बार तो बिन कहे ...
    लाजवाब लिखा है ...

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  3. हर एक पंक्तियाँ अद्भुत सुन्दर है जिसे आपने बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है

    जवाब देंहटाएं
  4. प्यार के ढाई अक्षर ही काफी होते हैं
    बहुत सुन्दर

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  5. Its really amazing and love to see such poetic senses. Wihes for more writings.

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