मैं और मेरा संसार
अपूर्ण मेरी तरह
किस्म-किस्म के कायदे
तरह तरह की सीमायें
घेरों का शोर
टूटे तो तकलीफ
न टूटे तो
दम घुटता है ...
मैं और मेरा प्यार
मेरी तरह निर्लज्ज
पल -पल बिखरता
क्षण-क्षण बंधता
कह दूं तो
फिर तमाशा
छुपाऊ तो
दम तोड़ता है...!!!
कह दूं तो
जवाब देंहटाएंफिर तमाशा
छुपाऊ तो
दम तोड़ता है...!!!
प्यार कुछ ऐसा ही होता है,,,,,,,
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
मैं और मेरा प्यार
जवाब देंहटाएंमेरी तरह निर्लज्ज
पल -पल बिखरता
क्षण-क्षण बंधता
कह दूं तो
फिर तमाशा
छुपाऊ तो
दम तोड़ता है...!!!
gahan bhav...sundar rachana...
ACHCHI RACHNA!!
जवाब देंहटाएंक्या टिप्पणी दूं।....... यहाँ तो बस कसमसाहट सी है कि मै इतनी सरस और सुन्दर रचना क्यों नहीं दे पाता हूँ। बस !!
जवाब देंहटाएंअंतरात्मा को झकझोरते शब्द ...!
जवाब देंहटाएंघेरों का शोर
जवाब देंहटाएंटूटे तो तकलीफ
न टूटे तो
दम घुटता है ...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक संक्षिप्त परिचय तस्वीर ब्लॉग लिंक इमेल आईडी के साथ चाहिए , कोई संग्रह प्रकाशित हो तो संक्षिप ज़िक्र और कब से
जवाब देंहटाएंब्लॉग लिख रहे इसका ज़िक्र rasprabha@gmail.com
मैं और मेरा संसार
जवाब देंहटाएंअपूर्ण मेरी तरह ....
यह संभवत: सभी का सच है
मन की ऊहापोह का सुंदर वर्णन ....
जवाब देंहटाएंअक्सर ऐसा ही होता है ....!!
सुंदर भाव ...!!
शुभकामनायें...
भावपूर्ण रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंमन मे उठने वाली कशमकश कों बाखूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंwaah..beautiful...
जवाब देंहटाएंwah, kya baat hai..
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है आपने ...
जवाब देंहटाएंमानसिक उहापोह और विवशता को दर्शाती सुंदर सी कविता ...
बधाई !!
इतनी दूरी अंतर मन से ?
जवाब देंहटाएंकिसी कवि की रचना देखूं !
जवाब देंहटाएंदर्द उभरता , दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
क्लेश हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दूं ,टिप्पणियों में, रोते गीत !
निज रचनाएं ,दर्पण मन का, दर्द समझते मेरे गीत !
सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंमैं और मेरे की अदभुत कशमकश.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.