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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

कशमकश ....


 मैंने अपने सुख दुःख के दो
तलों से पूछा ..
क्या  मैंने अपने से बेवफाई की 
एक ने कहा-हाँ
तुमने उस ठंडे पानी  को
गर्म राख से झुलसाया है
तूने मेरी परवाह न कर
उसको   सताया है .
उसकी झंकारों को मोड़कर 
उसके रूप को बदलाया है...

तो दुसरे तल ने कहा- नहीं 
उसने भी तेरा ख्याल न कर
जिल्लत की हर  नजर में तुझे झोंका है
सानिध्य का हर तार तोडा है 
तूने ठीक किया मेरे रूप 
तूने ठीक किया
अजीब उलझन है 
क्या किसने कहा ?
किसे अपनाऊ कही सुख के बहाने 
दुःख का अम्बार न लग जाए .......||
 


25 टिप्‍पणियां:

  1. यह कश्मकश पूरी उम्र चलती रहती है ..अच्छी प्रस्तुति

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  2. जीवन में यही कशमकश तो व्यक्ति को उलझाती है ...लेकिन जहाँ तक दुःख और सुख की बात है यह तो जीवन का हिस्सा हैं उस ताल की तरह कभी एक उपर तो कभी दूसरा ...यह क्रम तो चलता रहता है ....बहुत विचारणीय रचना ....शुभकामनायें

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  3. यही कशमकश का क्रम तो चलता रहता है
    उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

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  4. लेकन यथाथ क कठोरता जब तमाचा बनकर मेरे गाल पर पडं तब मैने जाना क चॉदनी रात कैसे आग उगलती है? चंदन का आिलंगन कतना जहरला हो सकता है?

    Bas yahi laahmlash ka aadhar hai.
    Dubaara aana pada kyonki baat poori hone se pahle hi tippani post ho gayi thi.

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  5. किसे अपनाऊ कही सुख के बहाने
    दुःख का अम्बार न लग जाए .......||

    अच्‍छी प्रसतुति !!

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  6. aap sabhi ka protsahit karne hetu dhanyvaad...
    @ashok ji yatharth ko tamacha aur adhik sakt ho jaata hai jab divasvapn me hote hain....apka abhar....

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  7. कशमकश ताउम्र रहती है, दिल से जो पहली बात सुनाई दे - मान लो

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  8. बहुत खूब.
    जिंदा होने की निशानी है कशमकश.

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  9. सुन्दर सृजन , प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
    आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.

    प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.

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  10. तलों का संतुलन - मैज़नाइन फ़्लोर?
    कविता अच्छी लगी, शुभकामनायें!

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  11. बहुत सुन्दर और भाव पूर्ण |
    आशा

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  12. कशमकश को सुन्दरता से बयाँ किया है..

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  13. वाह! क्या कशमकश है,आशा जी.
    आपका लेखन भावपूर्ण है.
    पढकर मन अभिभूत होता है.

    धनतेरस और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    'नाम जप' पर अपने अमूल्य विचार और
    अनुभव प्रस्तुत कर अनुग्रहित कीजियेगा.

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  14. द्वैत को अभिव्यक्त करती सुंदर रचना. आखिर घडी के इस पेंडुलम की भांति ही जिंदगी सुख दुख के बीच झूलती रहती है. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  15. Bahut hi sunder shabdo se apne bhawo ko ukera hai.

    Dhanteras wa diwali ki hardik subhkamnaye.

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  16. कशमकश या किंकर्तव्यविमूढ़ता तो होनी ही है जिंदगी में। नैतिकता और अनैतिकता के बीच जंग तो होनी ही है जिंदगी में। पार्थ जब विचलित हो गये तो हम जैसे साधारण मानव की क्या बिसात। सभी को कृष्ण तो मिल नहीं जाते।
    ..अच्छी लगी यह कविता भी।

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  17. बहुत बढ़िया आशा...अनुभवों को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है तुमने!
    यही जीवन है... ऐसा अनुभव होता है! फिर यही अनुभव सिखाता भी है कि...

    सुख दुख की उलझन के पथ पर ना जा रे मन
    दोनो का ही साझा है हर इक का जीवन...

    सुख ही दुख, दुख ही सुख बनता रहता प्रति क्षण
    सहज सत्य को राह मान जीवन पथ को रण...

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. बहुत बहुत धन्यवाद सरिता
      पर अनुभव ना कह कर रचनात्मकता कहे तो वह सही अलंकरण होगा...

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    3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    4. निश्चित रूप में...रचनात्मक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति है!...साथ ही जीवन की वास्तविकता की एक झलक भी!!!

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