जानती हूँ मैं....
न मुझमें लिबास का सलीका
न कुछ कहने की तहजीब
न ही समझूँ मैं मन तुम्हारे
क्यों कहते हो पहाडिन.....?
पर फिर भी
रूक जाते हैं मेरी एक धाद से
उस जंगल के लता वृक्ष
खिल उठते हैं मेरी आहट से
वो पहाड़ों की दीवारें गूँज
उठती हैं मेरी अनुगूंज से
चांदनी ही बन जाती है साथी
जब उलझ जाती हूँ कभी
इन सुरम्य घाटियों में
हाँ .... हूँ मै पहाडिन ....!!!
[धाद-पुकारना ]
बस मन बोल उठता है
जवाब देंहटाएंहाँ .... हूँ मै पहाडिन ....!!!
आपका पहाडिन होना और भावों को बहुत सलीके से अभिव्यक्त करना ....दोनों का अंदाज निराला है ..बेहतरीन अभिव्यक्ति
सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति , बधाई.
जवाब देंहटाएंआज 29- 10 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
वाह भावो का सुन्दर संगम्।
जवाब देंहटाएं....आपकी धाद न त ज्युकड़ी मा कुद्ग्याली सी लगे याली ...बहुत ..ही सुंदर अर सराहनीय....!!!
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत, क्या बात है.......
जवाब देंहटाएंमैं पहाडिन हूं......
जवाब देंहटाएंगजब की अभिव्यक्ति.....
बहुत खूब .
जवाब देंहटाएंदिल से निकली हुई सरल सी अभिव्यक्ति.
दिल को छू गयी.
वाह!
जवाब देंहटाएंएक दिल की गहराई से निकली यह अभिव्यक्ति कई दिलों को छू जायेगी।
..बहुत बधाई।
धाध जैसे क्षेत्रीय शब्द का उपयोग प्रभावशाली ढंग से किया गया है
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट सराहनीय है शुभकामनाऐं!!
मन कि भावनाओं को बखूबी उकेरा है
जवाब देंहटाएंbahut khoob.......
जवाब देंहटाएंअति उत्तम |सुन्दर चित्र अच्छी रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
sundar bhavnatmak prastuti..
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति ......
जवाब देंहटाएंकल 06/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
वाह! बहुत सुन्दर... सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बड़िया रचना और फोटोग्राफ।
जवाब देंहटाएंमुझे भी गर्व है कि मैँ पहाड़ी हूँ॥