फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

क्यों कहते हो......!





 



जानती  हूँ मैं....
न मुझमें लिबास का सलीका 
न कुछ कहने  की तहजीब 
न ही समझूँ मैं मन तुम्हारे 
क्यों कहते हो पहाडिन.....?

पर फिर भी 
वो निरीह पशु-झुण्ड 
रूक जाते हैं मेरी एक धाद से 
उस  जंगल के लता  वृक्ष
खिल  उठते हैं मेरी आहट से

वो पहाड़ों  की दीवारें गूँज
उठती  हैं मेरी अनुगूंज से 
चांदनी  ही बन  जाती  है  साथी 
जब उलझ जाती  हूँ कभी 
इन सुरम्य घाटियों में

बस  मन बोल  उठता  है 
हाँ .... हूँ मै पहाडिन ....!!!
[धाद-पुकारना ]   

 


19 टिप्‍पणियां:

  1. बस मन बोल उठता है
    हाँ .... हूँ मै पहाडिन ....!!!

    आपका पहाडिन होना और भावों को बहुत सलीके से अभिव्यक्त करना ....दोनों का अंदाज निराला है ..बेहतरीन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति , बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. ....आपकी धाद न त ज्युकड़ी मा कुद्ग्याली सी लगे याली ...बहुत ..ही सुंदर अर सराहनीय....!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खुबसूरत, क्या बात है.......

    जवाब देंहटाएं
  5. मैं पहाडिन हूं......
    गजब की अभिव्‍यक्ति.....

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूब .
    दिल से निकली हुई सरल सी अभिव्यक्ति.
    दिल को छू गयी.

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!
    एक दिल की गहराई से निकली यह अभिव्यक्ति कई दिलों को छू जायेगी।
    ..बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  8. धाध जैसे क्षेत्रीय शब्द का उपयोग प्रभावशाली ढंग से किया गया है

    आपकी पोस्ट सराहनीय है शुभकामनाऐं!!

    जवाब देंहटाएं
  9. मन कि भावनाओं को बखूबी उकेरा है

    जवाब देंहटाएं
  10. अति उत्तम |सुन्दर चित्र अच्छी रचना |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  11. कल 06/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह! बहुत सुन्दर... सुन्दर रचना....
    सादर बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही बड़िया रचना और फोटोग्राफ।
    मुझे भी गर्व है कि मैँ पहाड़ी हूँ॥

    जवाब देंहटाएं