
''इस चौखट पर हलचल होगी
ये दरवाजे चरमराएंगे आज
क्यूँ मन मेरा खुश होता है
कि तुम आओगे इस बार..
मैं तो पदचिन्ह पर ही
पैर रख पाती हूँ
उस गिने चुने रास्ते पर
ही धीमे धीमे चला करती हूँ..
ये घास उखड़ेगी आँगन की
ये ताले खुलेंगे मन के
गाँव में त्यौहार होगा शायद
इस बार वोट के बहाने..
पर ना तीज त्यौहार
ना लोकतंत्र के बस की
लाख कोशिशें हो जाए पर
ना बदल सका मन तुम्हारा..!!