आज उत्तराखंड में चुनावी दिन है.और पलायन यहाँ की सबसे बड़ी समस्या है .इसी बहाने ना जाने मेरे मन में ये पंक्तियाँ आ रही हैं जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रही हूँ ....
''इस चौखट पर हलचल होगी
ये दरवाजे चरमराएंगे आज
क्यूँ मन मेरा खुश होता है
कि तुम आओगे इस बार..
मैं तो पदचिन्ह पर ही
पैर रख पाती हूँ
उस गिने चुने रास्ते पर
ही धीमे धीमे चला करती हूँ..
ये घास उखड़ेगी आँगन की
ये ताले खुलेंगे मन के
गाँव में त्यौहार होगा शायद
इस बार वोट के बहाने..
पर ना तीज त्यौहार
ना लोकतंत्र के बस की
लाख कोशिशें हो जाए पर
ना बदल सका मन तुम्हारा..!!
चुनावों का मौसम है ..बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंham ummeed karte rahe
जवाब देंहटाएंtum vaise ke vaise hee rahe
badhiyaa
आशा है उत्तराखंड प्रगति की राह पर बढ़ चले.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
ghughuti basuti ji aap mere blog pr aayi.. aapka abhar..
हटाएंसमसामयिक प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंमुझे पूरी उम्मीद है कि आपने अपना वोट ज़रूर दिया होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है आपने।
सादर
sir....palayan ka dansh jhel rahe hai...nahin de paaye..
हटाएंउत्तराखंड की प्रगति की प्रतीक्षा में हम भी हैं..सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसमसामयिक प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा /
सुंदर , काश ऐसा हो...
जवाब देंहटाएंये घास उखड़ेगी आँगन की
जवाब देंहटाएंये ताले खुलेंगे मन के
गाँव में त्यौहार होगा शायद
इस बार वोट के बहाने..चुनावी पोस्ट , पर मन से निकले एहसास
सामायिक और सुन्दर है पोस्ट|
जवाब देंहटाएंमैं तो पदचिन्ह पर ही
जवाब देंहटाएंपैर रख पाती हूँ
उस गिने चुने रास्ते पर
ही धीमे धीमे चला करती हूँ..
वाह...बेहतरीन रचना...
नीरज
कम शब्दों में अधिक अभिव्यक्त करने की आपकी चिर-परिचित शैली में यह कविता भी बहुत कुछ कह जाती है..... कविता कुछ विस्तार मांगती थी वैसे. शायद. ..... प्रस्तुति के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना,सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंसमयानुकूल सार्थक अभिव्यक्ति......सराहनीय......
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी पढ़े
नेता,कुत्ता और वेश्या
सुन्दर और सार्थक रचना..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ.
हमारी कामना है उत्तराखंड 'देवभूमि' बना रहे उतना ही सुन्दर पुण्यमय !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन ,,,
जवाब देंहटाएंशुभकामनाए
ये घास उखड़ेगी आँगन की
जवाब देंहटाएंये ताले खुलेंगे मन के
गाँव में त्यौहार होगा शायद
वाह !!!! अव्यक्त दंश पीड़ा और बेहतरी की कामना का गूढ़ शब्द चित्र.
ये घास उखड़ेगी आँगन की
जवाब देंहटाएंये ताले खुलेंगे मन के
गाँव में त्यौहार होगा शायद
इस बार वोट के बहाने..
शयद ऐसा कुछ हो. सुंदर कामना और शायद सभी की. इस सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई आशा जी.
आपने बुलाया और मै हाज़िर! वह! बड़ा मज़ा आ गया! बहुत सुन्दर,सादगीपूर्ण लिखती हैं आप!
हटाएंComment box na khulne ke karan mai reply me comment likh rahee hun...kshama karen!