जिन्दगी एक उलझन के सिवा है ही क्या ..जो इसे जितना सुलझाने की कोशिश करता है वह उतना ही उलझता जाता है ......! लेकिन उसे यह भ्रम रहता है की उसने इसे सुलझा लिया है .....!
जितना सुलझाया जाए जिंदगी उलझती जाती है.... बढिया भाव।
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jidagi yun hi uljhti sulajhti chalti rahti hai..
जवाब देंहटाएं..jindagi ke uljhan se ru-b-ru karati sarthak rachna
सुलझाते सुलझाते कई सच थकान बन सिमट आते हैं ...
जवाब देंहटाएंसच है...अक्सर जिंदगी की उलझनें सुलझाते सुलझाते हमारी शक्ति चुक जाती है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
...प्रशंसनीय रचना आशा जी
जवाब देंहटाएंमगर बेहद प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की बधाई
जिंदगी की उलझन को सुलझाते हुए थक तो जाते ही है ये कदम ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ,बेहतरीन रचना है ....
सच है..जिंदगी की बहुत सी उलझने सुलझाते सुलझाते थक तो जाते ही है लेकिन आशा है न आशा तो आशा ही है..फिर सुलझायेगी..बहुत गहन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंजिन्दगी एक उलझन के सिवा है ही क्या ..जो इसे जितना सुलझाने की कोशिश करता है वह उतना ही उलझता जाता है ......! लेकिन उसे यह भ्रम रहता है की उसने इसे सुलझा लिया है .....!
जवाब देंहटाएंकुछ उलझने रहें भी तो क्या फ़र्क पड़ना है - खालीपन की ऊब तब शायद न लगे.
जवाब देंहटाएंkabhee srf ahsaas hotaa hai
जवाब देंहटाएंgaanthein sulajh gayee
hosh mein aataa hoon jab
pahle se jyaadaa uljhee huee dikhtee
ashaji bahut khoob likhaa hai
जितना सुलझाया जाए जिंदगी उलझती जाती है....
जवाब देंहटाएंबढिया भाव।
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बहुत लटीक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना |
जवाब देंहटाएंरिश्तों को सुलझाते सुलझाते थकान होना लाजिमी है ... आसान नहीं होते उलझे रिश्ते ...
जवाब देंहटाएंगहरी बात कह दी है आपने ...
उलझी सी जिंदगी में कुछ सुलझे से रिश्ते फिर भी दिखती गांठे.....बहुत सुन्दर|
जवाब देंहटाएंगह्न्भावभिव्यक्ति ....समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
samay ki thakan ko ingit karti samaykal ko vyakt karti rchana aabhr.mere blog par aaka svagat hae.
जवाब देंहटाएंजिन्दगी उलझे धागे की तरह रिश्तों को पिरोये रहती है,और हम उन भावनाओं की गांठें हैं जो गुंथी होती हैं,,
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति ,बधाई|
इन्ही उलझनों को सुलझाने में तमाम उम्र निकल जाती. सार्थक प्रयत्न पर खुशी भी स्वाभाविक है.
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना.
बधाई.
जिन्हें पल पल गाँठ पे गाँठ
जवाब देंहटाएंपर सुलझाया है
कुछ सीधा सा डोर
दिखता है अब दूर से
सिमटा हुआ सा
महसूस होता है ये दायरा..
दायरा जो भी हो, कभी सीमित नही होता । हम लोग हा उसे सीमित कर देते हैं । मेरे पोल्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
'कितना' कह देती हैं आप - चंद पंक्तियों में ! वाह ! !,
जवाब देंहटाएंbhut sundar...bhut gehri...dil ko choo gayiin...
जवाब देंहटाएंaur likhiye...intezaar rhega..!!
पता नहीं कहाँ कहाँ ले गए आपके शब्द मुझे... पर मुझे नहीं लगता कि मैं आपके शब्दों कि तह को छू भी पाया हूँ.
जवाब देंहटाएंLife is Just a Life
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क्या कहूँ शब्द कम पड़ रहे हैं....एक गहन सोच लिए कविता ...बहुत सुन्दर.!
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट पर आप आयीं ..अच्छा लगा