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सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

उफ़

उफ़ ..
कितना अभिमान है मुझे
अपने इन सुलझे धागों पर 

जिन्हें पल पल गाँठ पे गाँठ 
पर सुलझाया है 
कुछ सीधा सा डोर 
दिखता है अब दूर से 
सिमटा हुआ सा 
महसूस होता है ये दायरा..

पर अब अंत में 
ये अजीब सी थकान कैसी...??? 

23 टिप्‍पणियां:

  1. jidagi yun hi uljhti sulajhti chalti rahti hai..
    ..jindagi ke uljhan se ru-b-ru karati sarthak rachna

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  2. सुलझाते सुलझाते कई सच थकान बन सिमट आते हैं ...

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  3. सच है...अक्सर जिंदगी की उलझनें सुलझाते सुलझाते हमारी शक्ति चुक जाती है...

    बहुत सुन्दर रचना..

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  4. ...प्रशंसनीय रचना आशा जी
    मगर बेहद प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की बधाई

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  5. जिंदगी की उलझन को सुलझाते हुए थक तो जाते ही है ये कदम ...
    बहुत सुन्दर ,बेहतरीन रचना है ....

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  6. सच है..जिंदगी की बहुत सी उलझने सुलझाते सुलझाते थक तो जाते ही है लेकिन आशा है न आशा तो आशा ही है..फिर सुलझायेगी..बहुत गहन प्रस्तुति..

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  7. जिन्दगी एक उलझन के सिवा है ही क्या ..जो इसे जितना सुलझाने की कोशिश करता है वह उतना ही उलझता जाता है ......! लेकिन उसे यह भ्रम रहता है की उसने इसे सुलझा लिया है .....!

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  8. कुछ उलझने रहें भी तो क्या फ़र्क पड़ना है - खालीपन की ऊब तब शायद न लगे.

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  9. kabhee srf ahsaas hotaa hai
    gaanthein sulajh gayee
    hosh mein aataa hoon jab
    pahle se jyaadaa uljhee huee dikhtee

    ashaji bahut khoob likhaa hai

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  10. जितना सुलझाया जाए जिंदगी उलझती जाती है....
    बढिया भाव।

    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  11. रिश्तों को सुलझाते सुलझाते थकान होना लाजिमी है ... आसान नहीं होते उलझे रिश्ते ...
    गहरी बात कह दी है आपने ...

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  12. उलझी सी जिंदगी में कुछ सुलझे से रिश्ते फिर भी दिखती गांठे.....बहुत सुन्दर|

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  13. गह्न्भावभिव्यक्ति ....समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  14. samay ki thakan ko ingit karti samaykal ko vyakt karti rchana aabhr.mere blog par aaka svagat hae.

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  15. जिन्दगी उलझे धागे की तरह रिश्तों को पिरोये रहती है,और हम उन भावनाओं की गांठें हैं जो गुंथी होती हैं,,
    शानदार अभिव्यक्ति ,बधाई|

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  16. इन्ही उलझनों को सुलझाने में तमाम उम्र निकल जाती. सार्थक प्रयत्न पर खुशी भी स्वाभाविक है.
    उम्दा रचना.

    बधाई.

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  17. जिन्हें पल पल गाँठ पे गाँठ
    पर सुलझाया है
    कुछ सीधा सा डोर
    दिखता है अब दूर से
    सिमटा हुआ सा
    महसूस होता है ये दायरा..

    दायरा जो भी हो, कभी सीमित नही होता । हम लोग हा उसे सीमित कर देते हैं । मेरे पोल्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

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  18. 'कितना' कह देती हैं आप - चंद पंक्तियों में ! वाह ! !,

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  19. bhut sundar...bhut gehri...dil ko choo gayiin...
    aur likhiye...intezaar rhega..!!

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  20. पता नहीं कहाँ कहाँ ले गए आपके शब्द मुझे... पर मुझे नहीं लगता कि मैं आपके शब्दों कि तह को छू भी पाया हूँ.
    Life is Just a Life
    My Clicks
    .

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  21. क्या कहूँ शब्द कम पड़ रहे हैं....एक गहन सोच लिए कविता ...बहुत सुन्दर.!
    मेरी पोस्ट पर आप आयीं ..अच्छा लगा

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