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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

पहाड़ और नारी

एक सा है जीवन
पहाड़ और नारी का 
कभी सुन्दर,कभी नीरस
कभी खिला, कभी उजड़ा

कुछ सख्त मन एक समान
कितना कुछ समेटे हुए
कुछ सीमायें हैं दोनों की
समान अस्तित्व की लकीरें

हर कठोर प्रहार सह लें 
हर अपनत्व को पहचान लें
पर टूटे जब दोनों
बिखर जाएँ कण-कण में

अपने से बाहर निकल आओ
थमकर,एकटक  देखकर
पहचान लो जरा क्या है ये
पहाड़ और....और नारी....!  

      
 

22 टिप्‍पणियां:

  1. अपने से बाहर निकल आओ
    थमकर,एकटक देखकर
    पहचान लो जरा क्या है ये
    पहाड़ और....और नारी....!

    पहाड़ और नारी को संदर्भित करते हुए आपने एक सार्थक बिम्ब प्रस्तुत किया है ......!

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  2. बहुत सुन्दर..
    और दोनों ही अपने ऊँचा होने का कोई दंभ नहीं पालते...

    बहुत अच्छे भाव आशा जी..

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  3. कुछ सख्त मन एक समान
    कितना कुछ समेटे हुए
    कुछ सीमायें हैं दोनों की
    समान अस्तित्व की लकीरें... बेहद सार्थक

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  4. नारी को धरती के रूप में देखा जाता है...पहाड़ के रूप में देखना नारी की महानता को सटीक रूप से दर्शा गया,आपकी इस सोच के लिए बधाई|

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  5. 'हर कठोर प्रहार सह लें
    हर अपनत्व को पहचान लें'.

    शायद सहनशक्ति ही स्त्रीत्व व मातृत्व की पहिचान है.

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  6. हर कठोर प्रहार सह लें
    हर अपनत्व को पहचान लें
    पर टूटे जब दोनों
    बिखर जाएँ कण-कण में
    बेहतरीन भाव संयोजन लिए बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  7. हर कठोर प्रहार सह लें
    हर अपनत्व को पहचान लें
    पर टूटे जब दोनों
    बिखर जाएँ कण-कण में
    बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,बधाई

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  8. वाह!!!!!आशाजी बहुत अच्छी प्रस्तुति, सुंदर रचना के लिए बधाई.

    WELCOM TO MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  9. बहुत अच्छी प्रस्तुति, सुंदर रचना....
    शिव रात्रि पर हार्दिक बधाई..

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  10. पहाड़ और नाई जेवण ... गज़ब का सामजस्य स्थापित किया है ...
    सुन्दर रचना है ....

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  11. कभी सुन्दर,कभी नीरस
    कभी खिला, कभी उजड़ा
    ekdam sahi tulna.....

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  12. हर कठोर प्रहार सह लें
    हर अपनत्व को पहचान लें
    पर टूटे जब दोनों
    बिखर जाएँ कण-कण में
    .....बहुत ही प्प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति !

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  13. उत्साहवर्धक प्रस्तुति सकारात्मकता बिखेरती सी .

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  14. क्षमा
    आशा बहन
    आपके ब्लाग से एक फोटो लिया है
    अनुमति की प्रत्याशा में

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  15. बहुत सटीक उपमा ... सुंदर प्रस्तुतिकरण

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  16. हर कठोर प्रहार सह लें
    हर अपनत्व को पहचान लें
    पर टूटे जब दोनों
    बिखर जाएँ कण-कण में...
    ...
    सुंदर कविता !

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