घुटन तो होती है
दफन होने में
पर परत-परत दफन होना...?
आखिर क्यूँ ना मिलती
मेरे मन की परिभाषाएं
तुम्हारे मन से...??
और क्यूँ हर
बात के बाद
एक संतुलित
मानसिक अंत...???
दफन होने में
पर परत-परत दफन होना...?
आखिर क्यूँ ना मिलती
मेरे मन की परिभाषाएं
तुम्हारे मन से...??
और क्यूँ हर
बात के बाद
एक संतुलित
मानसिक अंत...???
सार्थक सृजन, आभार.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें
बहुत बढ़िया रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
घुटन तो होती है .... पर हर बार बातों की परतों में एक अंत होता है, कभी सामान्य कभी असामान्य
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति..आशा..बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
bahut sundar rachna! kripya badhai sweekaren.
जवाब देंहटाएंसुन्दर जज्बातोँ से भरी सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंसार्थक और गहन...
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भाव............
जवाब देंहटाएंएक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर शायद हम कभी नहीं जान पाते.....
अनु
बहुत सार्थक रचना ... बधाई स्वीकार करें ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना॥
जवाब देंहटाएंwww.garhwalikavita.blogspotcom
बहुत ही सुंदर गहन भाव अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण रचना............बधाई स्वीकारें !!!!
जवाब देंहटाएंऔर क्यूँ हर
जवाब देंहटाएंबात के बाद
एक संतुलित
मानसिक अंत...??? santulit mansik aant bahut jaruri hai ...bahut acchi rachana....
और क्यूँ हर
जवाब देंहटाएंबात के बाद
एक संतुलित
मानसिक अंत...???
....बहुत घुटन भरा होता है यह माहौल .....एक आर्तनाद है इस कविता में ..बहुत सुन्दर आशाजी
और क्यूँ हर
जवाब देंहटाएंबात के बाद
एक संतुलित
मानसिक अंत...???
ऐसे प्रश्न जो मन में उठें, जवाब कहाँ से मिले इस घुटन का. जिंदगी यही है. बहुत अच्छी रचना, बधाई.
भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंमन का मन से मिलन प्रेम की धार पे चल के होता है ...
जवाब देंहटाएंइस प्रश्न का जवाब प्रेम में ही छिपा है ...
प्रेरक टिप्पणी ..आभार
हटाएंवाह....वाह .......बहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंउफ़ ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !