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गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

बेवजह ...

शुरुआत का पता मुझे
अंत की खबर भी
फिर भी बैचेन हूँ
बेवजह...

हाथों की लकीरें 
रंगी हैं तमाम रंगों से
फिर भी कुछ रंग 
तलाशती हूँ
बेवजह...

डोर ही डोर
उन्हें थामे मैं ही मैं
हवा का रुख भी मेरी ओर
फिर भी हूक ये क्यूँ
बेवजह...

तू तो पास ही मेरे
और हमराह भी
फिर तुझे क्यूँ ढूँढती हूँ
बेवजह...!!!
   
   

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खुबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।

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  2. सब कुछ होते हुए बेवज़ह की परेशानी परेशान करती है...

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  3. अनुपम भाव लिए सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट .

    आशा जी,बहुत दिनों से मेरे पोस्ट पर नही आई आइये स्वागत है,...

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  4. बहुत सुंदर...................
    कभी कभी कोई अनजानी असुरक्षा करती है बेचैन.......
    हम सभी को............

    बहुत अच्छे भाव समेटे हैं...........

    अनु

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  5. हर बात की कुछ ना कुछ बजह होती हैं :)

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  6. हाथों की लकीरें
    रंगी हैं तमाम रंगों से
    फिर भी कुछ रंग
    तलाशती हूँ
    बेवजह...

    बेवजह नहीं, कुछ तो वजह है, हमारी उम्मीदें बहुत ज्यादा होतीं...सुन्दर रचना, बधाई.

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  7. तू तो पास ही मेरे
    और हमराह भी
    फिर तुझे क्यूँ ढूँढती हूँ
    बेवजह...!!!बेहतरीन अंदाज़.....

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  8. उम्मीदो पर ही दुनिया कायम है.. बहुत सुन्दर भाव है आशा..बधाई

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  9. शुरुआत का पता मुझे
    अंत की खबर भी
    फिर भी बैचेन हूँ
    बेवजह... पता होना कुछ और पता करता है और एक अनजानी आहटों से बेचैन होता है

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  10. फिर भी हूक ये क्यूँ
    बेवजह...

    दिल कभी झूठ नहीं बोलता...
    सुंदर अभिव्यक्ति....

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  11. तू तो पास ही मेरे
    और हमराह भी
    फिर तुझे क्यूँ ढूँढती हूँ
    बेवजह...!!!
    .ऐसा अक्सर होता है जीवन में ....बहुत सुन्दर आशाजी

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  12. ये बैचेनी है जो अक्सर आ जाती है ... बहुत लाजवाब लिखा है ...

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  13. संबंधों की उदासीनता पैदा करती है ये बे चैनी .संबंधों की आंच अकसर बुझी रहती है .अच्छी रचना .

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  14. kai bar bevajah man bhi ashant hota aur bhavuk man nai kavita ka srijan kar leta hai.....

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  15. ये बेवजह किया गया कई काम बहुत से अच्छे परिणाम की वजह बन जाता है।
    वेलकम और फॉलोअर बनने वाला बड़ा अच्छा विजेट लगा रखा है आपने।

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  16. डोर ही डोर
    उन्हें थामे मैं ही मैं
    हवा का रुख भी मेरी ओर
    फिर भी हूक ये क्यूँ
    बेवजह...
    वाह.... वेहतरीन रचना

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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