फ़ॉलोअर

बुधवार, 2 नवंबर 2011

कुछ दर्द...अलग सा ..!

मेरे गाँव की मिट्टी 
शायद सोचती होगी ताउम्र   

क्यूँ  हूँ  मैं इस छोर पर 
जिसे अंतिम कहते हैं
छोड़ जाते है सब
सिर्फ कुछ जाते पदचिन्ह 
कर जाते है पलायन 
कभी सुख के बहाने 
कभी समृद्धि के बहाने...

ताकती रहती हूँ दिन भर
इन बंद दरवाजों को 
आहट तेरे आने की
नया जोश भर देंगी मुझमें 
न जाने बैठी हूँ कब से 
एक क्षण मुस्कुराने को ...

जाना होता है जब कभी
भूले भटके उस ओर..
गाँव की मिट्टी सुबक कर कहती है
ना..जा.. लौट कर
ना कर पलायन....!!
  

35 टिप्‍पणियां:

  1. ना जा लौट कर,ना कर पलायन सुंदर भावों के साथ लिखी रचना...सुंदर पोस्ट ..मेरे नए पोस्ट पर स्वागत है ...

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना।
    पलायन की त्रासदी पर भावुक कर देने वाली प्रस्‍तुति।

    जवाब देंहटाएं
  3. आहट तेरे आने की
    नया जोश भर देंगी मुझमें
    न जाने बैठी हूँ कब से
    एक क्षण मुस्कुराने को
    .........प्रभावित करती पंक्तियाँ ....मन को झकझोरने के लिए बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति....

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहद गहन मगर सटीक अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  5. अपनी धरती की मिटटी -हमेशा ही प्यारी होती है ! सुन्दर भावभरी कविता ! बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. गाँव की मिट्टी और घर की दीवारें रोक ही लेती है ...

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर रचना ज़मीन से जुड़े रहने की ख्वाहिश को कहती हुई

    जवाब देंहटाएं
  8. जाना होता है जब कभी
    भूले भटके उस ओर..
    गाँव की मिट्टी सुबक कर कहती है
    ना..जा.. लौट कर
    ना कर पलायन....!!

    हृदयस्पर्शी.....

    जवाब देंहटाएं
  9. जाना होता है जब कभी
    भूले भटके उस ओर..
    गाँव की मिट्टी सुबक कर कहती है
    ना..जा.. लौट कर
    ना कर पलायन....!!behtreen post...

    जवाब देंहटाएं
  10. कर जाते है पलायन
    कभी सुख के बहाने
    कभी समृद्धि के बहाने......
    bahut bhawpoorn.......achcha laga.

    जवाब देंहटाएं
  11. क्यूँ हूँ मैं इस छोर पर
    जिसे अंतिम कहते हैं
    छोड़ जाते है सब
    सिर्फ कुछ जाते पदचिन्ह

    बहुत ही खूब लिखती है आप.
    आपकी कलम को शुभ कामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  12. माटी के मनोभावों को सार्थक अभिव्यक्ति दी है आपने.

    जवाब देंहटाएं
  13. गाँव की मिट्टी सुबक कर कहती है
    ना..जा.. लौट कर
    ना कर पलायन....!!

    बहुत सही बात कही है आपने। गाँव की मिट्टी इसलिए सुबक रही है है क्योंकि अब उसे कोई गाँव की मिट्टी रहने भी नहीं देना चाहता।

    बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  14. यथार्थपरक सोच के साथ लिखी गयी सकारात्मक भावपूर्ण रचना !

    जवाब देंहटाएं
  15. गांव की माटी से दूर होकर जाने वाला भी हरपल सोचा करता है अपनी माटी के बारे में मगर नहीं लौट पाता वह दुबारा। अपनी जड़ों से उखड़कर दूर कहीं जाकर पल्लवित होने वाला पौधा पेड़ बनने पर नहीं लौट पाता अपने गांव लेकिन याद तो करता रहता है अपनी माटी को।
    यही नियति है...क्या किया जाय!

    जवाब देंहटाएं





  16. आदरणीया आशा जी
    सस्नेहाभिवादन !

    इतनी भावप्रवण है आपकी कविता कि सीधे मन में पैठ करती है…
    गांव की मिट्टी सुबक कर कहती है
    ना..जा.. लौट कर
    ना कर पलायन....!!


    मिट्टी से जुड़ाव कभी ख़त्म हो भी नहीं पाता …


    संवेदनाओं को जाग्रत करने वाली इस रचना के लिए बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  17. जाना होता है जब कभी
    भूले भटके उस ओर..
    गाँव की मिट्टी सुबक कर कहती है
    ना..जा.. लौट कर
    ना कर पलायन....!!

    बेहद संवेदनशील विषय पर आपके विचार ह्रदय द्रवित कर गए. सुंदर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  18. behad bhaavpurn. gaanv ki mitti paanv rokati to hai par door jo chala gaya chala gaya. bas yaadon mein rah jat ahai sabkuchh.

    जवाब देंहटाएं
  19. अपनी जड़ों से और उसकी माटी से जुड़े रहना ही सही जीना है।

    जवाब देंहटाएं
  20. जाना होता है जब कभी
    भूले भटके उस ओर..
    गाँव की मिट्टी सुबक कर कहती है
    ना..जा.. लौट कर
    ना कर पलायन....!!


    आशा जी बहुत ही सुन्दर रचना आज के
    पलायन करते लोगों के लिये .!
    मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है !.

    जवाब देंहटाएं
  21. इस अद्भुत रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकारें...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  22. आप सभी जनों ने मेरी कविता पर टिप्पणी मेरा जो प्रोत्साहन बढाया है इसके लिए सादर धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  23. पलायन की समस्या को चित्रित करती रचना, अच्छी लगी!

    जवाब देंहटाएं
  24. .... बंद दरवाजों को
    आहट तेरे आने की
    नया जोश भर देंगी मुझमें
    न जाने बैठी हूँ कब से
    एक क्षण मुस्कुराने को ...

    गाँव के दर्द को बखूबी बयां किया आपने

    जवाब देंहटाएं
  25. सुन्दर ..मूल भाव कोमल ..एक प्रेयसी की चाह जल्द ही मनोकामनाए पूरी हों ....
    भ्रमर ५

    ताकती रहती हूँ दिन भर
    इन बंद दरवाजों को
    आहट तेरे आने की
    नया जोश भर देंगी मुझमें
    न जाने बैठी हूँ कब से
    एक क्षण मुस्कुराने को ...

    जवाब देंहटाएं
  26. अत्यंत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ..मिट्टी की सिसकियाँ और दर्द समेटे
    ह्रदय स्पर्शी कब्यांजलि ...आशा जी शुभ कामनायें !!!

    जवाब देंहटाएं
  27. पहले देवसारी, फिर देवाल और अब शायद कहीं और (दून घाटी)........................ स्वयं अनुभव करने के उपरान्त मिट्टी का दर्द, एवं पलायन की मनोवृति को शब्दों में उकेरना निश्चित रूप से प्रशंसनीय है।

    जवाब देंहटाएं