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गुरुवार, 12 जनवरी 2012

कुछ टूटा

कुछ टूटा फिर से..
 ना जाने क्या था 
क्या बुना था धीरे-धीरे
मन ने सोच कर तुम्हें
दर्द था,निकल आया
रोके से ना रुका....बस
बहता गया तमाम सिलवटें लिए...!

आये वो कुरेदने
तीखे- तीखे शब्दों से
मन था मेरा संभल गया
टूटना था जिसे जार-जार 
वो टूट गया...!!!!
  

54 टिप्‍पणियां:

  1. मन ने सोच कर तुम्हें
    दर्द था,निकल आया
    रोके से ना रुका....बस
    बहता गया तमाम सिलवटें लिए...!

    sundar...marmik...

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  2. सच है जब भी दर्द बहार आता है कोई न कोई उसे अपने शब्दों से कुरचने ज़रूर चला आता है सार्थक प्रस्तुति

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  3. शांत भाव से कितना कुछ कह दिया -
    आये वो कुरेदने
    तीखे- तीखे शब्दों से
    मन था मेरा संभल गया
    टूटना था जिसे जार-जार
    वो टूट गया...!!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. आपको लोहड़ी की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
    ----------------------------
    कल 13/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. ....बहता गया तमाम सिलवटें लिए...!

    बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें .

    नीरज

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  6. बहुत ही सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति...

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  7. मार्मिक अभिव्यक्ति...
    दर्द की भी आदत सी हो गई है
    हमें जब से मोहब्बत सी हो गई है !

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  8. अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त करती एक सुन्दर प्रस्तुति. आभार !

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  9. कुछ टूटा फिर से..
    ना जाने क्या था
    क्या बुना था धीरे-धीरे
    मन ने सोच कर तुम्हें
    दर्द था,निकल आया
    रोके से ना रुका....बस
    बहता गया तमाम सिलवटें लिए...!
    मन को छूती , मार्मिक रचना

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  10. चंद पंक्तिया.....भावों से नाजुक शब्‍द........

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  11. गहरी अभिव्‍यक्ति।
    सुंदर रचना।

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  12. आये वो कुरेदने
    तीखे- तीखे शब्दों से
    मन था मेरा संभल गया
    टूटना था जिसे जार-जार
    वो टूट गया...!!!!

    बहुत सुंदर मार्मिक प्रस्तुति,

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  13. बहुत सुन्दर रचना!
    लोहड़ी पर्व की शुभकामनाएँ!

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  14. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...

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  15. bhaavnaoN ko yooN shabdoN meiN padhnaa
    bahut achhaa lagaa ...
    sundar rachnaa !

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  16. behtareen rachna | bahut kuchh kah diya aapne kam shabon me hi.

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  17. संवेदनशील भाव ....
    शुभकामनायें आपको !

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  18. बहुत सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया मार्मिक अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
    new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....

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  19. यह रचना अपनी एक अलग विषिष्ट पहचान बनाने में सक्षम है।

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  20. आये वो कुरेदने
    तीखे- तीखे शब्दों से
    मन था मेरा संभल गया
    टूटना था जिसे जार-जार
    वो टूट गया...!!!!

    सुंदर गहन अभिव्यक्ति.

    शुभकामनायें.

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  21. बहुत ही उत्तम रचना|मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें।

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  22. आये वो कुरेदने
    तीखे- तीखे शब्दों से
    बहुत सुंदर रचना॥

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  23. कुछ अलग सी रचना...बहुत ही सुन्दर |

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  24. आपके हर पोस्ट नवीन भावों से भरे रहते हैं । पोस्ट पर आना सार्थक हुआ। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  25. टूटने वाली चीजें अक्सर टूट जाती हैं ... और दर्द बह जाए तो हल्का हो जाता है मन ...

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  26. आये वो कुरेदने
    तीखे- तीखे शब्दों से
    मन था मेरा संभल गया
    टूटना था जिसे जार-जार
    वो टूट गया...!!!!
    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट "हो जाते हैं क्यूं आद्र नयन" पर आपके बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी ।

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  27. अच्छी प्रस्तुति,बहुत सुंदर कविता बेहतरीन पोस्ट....
    new post...वाह रे मंहगाई...

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  28. आये वो कुरेदने
    तीखे- तीखे शब्दों से
    मन था मेरा संभल गया
    टूटना था जिसे जार-जार
    वो टूट गया...!!!!
    bahut hi achha likha hai apne ....bilkul lajabab .....sadar abhar.

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  29. दर्द रिसते-रिसते ढरक जायेगा मगर हाय! दृश्यमान हो जायेगा।
    ..बहुत सुंदर लिखा है आपने।

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  30. आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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